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पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी / हसन 'नईम'

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पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी
क़र्या-ए-जाँ में मोहब्बत की हवा चलती थी

उन के कूचे से गुज़रता था उठाए हुए सर
जज़्बा-ए-इश्‍क़ के हम-राह अना चलती थी

इक ज़माना भी चला साथ तो आगे आगे
गर्द उड़ाती हुई इक मौज-ए-बला चलती थी

पर्दा-ए-फिक्र पे हर आन चमकते थे नुजूम
फ़र्श ता अर्श कोई माह-लक़ा चलती थी

मैं ही तन्हा न ख़राबों से गुज़रता था ‘नईम’
शाम ता सुब्ह सितारों की ज़िया चलती थी