पैदलों में हम न असवारों में हैं / मेला राम 'वफ़ा'
पैदलों में हम न असवारों में हैं
ख़ार तिरी राह-गुज़ारों में हैं
उड़ता है अग़यार से मेरा मज़ाक़
तंज़ के अंदाज़ इशारों में हैं
बारगहे-हुस्न की अल्लह रे शान
शम्सो-क़मर आईनादारों में हैं
मुंतज़िरे-यक-नज़रे-इल्तिफ़ात
हम भी खड़े अर्ज़-गुज़ारों में हैं
नाले ही निकलेंगे दिले-ज़ार से
नाले ही इस साज़ के तारों में हैं
नाज़ था कल तक जिन्हें तदबीर पर
आज वो तक़दीर के मारों में हैं
अहले-ज़मीं के है इरादों पे बहस
मशवरे गर्दू पे सितारों में हैं
कौन हुआ तेरी गली में शहीद
तज़किरे क्या राह-गुज़ारों में हैं
आतिशे-ग़म ने जिन्हें ठंडा किया
अब भी शरर उनके ग़ुबारों में हैं
हसरते-दीदार के मारे हुए
गर्दिशे-तक़दीर के मारों में हैं
कर चुके सर कोह की चोटी को वो
महव जो वादी के नज़ारों में हैं
छेड़ दी किस ने मिरी रूदादे-ग़म
नींद के आसार सितारों में हैं
एहले-क़ियामत है तिरा एहदे-हुस्न
फ़ित्ने बपा राहगुज़ारों में हैं
क्या ये अदावत का है कुछ कम सुबूत?
मेरे अदू आप के प्यारों में हैं
कहते हैं वो सुन के मेरा हाले-ग़म
आप भी तक़दीर के मारों में हैं
लोग लिए जाते हैं चुन चुन के फूल
और हम उलझे हुए ख़ारों में हैं
राहनुमाई के ज़माने गए
राहजन अब राहगुज़ारों में हैं
क़द्र-श्नासों का है कहत ऐ 'वफ़ा'
होने को हम एक हज़ारों में हैं।