पैदा हुए थे आतिशे-कुन के शरार में / रवि सिन्हा
पैदा हुए थे आतिशे-कुन<ref>वह आग जिसमें सृष्टि पैदा हुई (The fire at the beginning of the universe)</ref> के शरार<ref>चिंगारियाँ (sparks)</ref> में
अब है वजूद ख़ाक के नक़्शो-निगार<ref>सजावट (decorations)</ref> में
क़ुदरत हिसार<ref>घेरा (boundary)</ref> है तो तलातुम<ref>लहरों का आवेग (dashing of waves)</ref> है आरज़ू
साहिल<ref>समुद्र का किनारा (sea-beach)</ref> पे देखिए कि क्या उभरे निखार में
ग़म और ख़ुशी की दौलतें उनकी नज़र की ओट
ख़्वाहिश मिरी कि जो भी दें वो दें उधार में
गुज़री है उम्र उनके तग़ाफ़ुल<ref>उपेक्षा (neglect)</ref> के साथ-साथ
अब क्या मुराद आएँ हम उनके शुमार में
गर्दिश में शब-ओ-रोज़ हैं पर ये तो पूछिए
लौटे हैं हू-ब-हू कभी अगली बहार में ?
शायर थे बज़्मे-शहर में फ़रोग़े-हुस्न<ref>सुन्दरता की शोभा (splendour of beauty)</ref> था
अब फ़लसफ़े का दौर है उजड़े दयार में
चश्मा हो नख़्ल हो या कम-अज़-कम सराब<ref>मरीचिका (mirage)</ref> हो
वो पूछते हैं रेग क्यूँ है रेगज़ार में
दौड़ा फिरे रगों में या तो इश्क़ है या क़ौम
सुनिए अदीब कह रहे हैं कुछ बुखार में
तारीख़ की हरकत में है वसीलए नजात<ref>मुक्ति के साधन (means of liberation)</ref>
करते हैं फिर भी जो है अपने इख़्तियार में
जो बच गये हैं आप इस जंगे-सदी की शाम
वजहे-शिकस्त ढूँढ़िए अहले-फ़रार<ref>भागा हुआ आदमी (deserter, renegade)</ref> में
वो रहनुमा अवाम के महबूबे-इन्क़िलाब
हम तो हुए हैं पीर फ़क़त इन्तिज़ार में