भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पैमाना / प्रांजल धर
Kavita Kosh से
वे गहरी नींद सोते हैं
क्योंकि उन्हीं के कन्धों पर पूरे देश का भार है ।
हमें जागना पड़ता है
हम भारवाहक हैं ।
वे वरेण्य हैं, हम नगण्य ।
वे नींद के दास हैं और नींद हमारी दासी ।
श्रेष्ठत्व का यह कैसा पैमाना है !
ख़ैर ।