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पैमान वफ़ा का बाँधा / शमशेर बहादुर सिंह
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फिर निगाहों ने तेरी दिल में कहीं चुटकी ली
फिर मेरे दर्द ने पैमाना वफा का बाँधा
और तो कुछ न किया इश्क में पड़कर दिल ने
एक इनसान से इनसान वफा का बाँधा
एक फाहा भी मेरे जख्म पे रक्खा न गया
और सर पे मेरे एहसान दवा का बाँधा
इस तकल्लुफ की मोहब्बत थी कि उठते ही बनी
रंग यारों ने वो मेहमानसरा का बाँधा
मौसमे-अब्र में आता है मेरे नाम ये हुक्म:
कि खबरदार जो तूफान बला का बाँधा!
मुसकराते हुए वह आये मेरी आँखों मे-
देखने क्या सरोसामान कजा का बाँधा