भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैर-गाड़ी / पढ़ीस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साह्यब, रहयि सलामति
यह मोरि पैर गाड़ी।
दुनिया ति हयि अजूबा
यह मोरि पैर-गाड़ी
सब म्वाह नगर म्याला का देखि-देखि छकि गे,
उयि राति अॅध्यरिया मा सबकी गल्ली भूलीं।
बड़के की गाड़ी के जब बर्ध<ref>बैल</ref> झ्वाँक डारिनि,
छोटकऊ क्यार घ्वाड़ा लयि ठ्याक ठप्प ह्वयिगा।
मँझिलऊ केरि मोटर का, फाटि गवा भोंपू,
तब यह छिन मन्तरू मा
महिका घर लायी
दुनिया ते हयि अजूबा
यह मोरि पैर गाड़ी।
जंगल मा जब जाग्यउॅ तब का देख्यउँ दादा!
गॅजरहीं फँसिलि फूली पर फाटि परा पाला।
आँधी, बउखा पथरन ते द्यास की मड़य्या<ref>झोपड़ी</ref>
सब टूक-टूक टूटीं, ह्वयिगे किसान चउपट।
जिउ छॉड़ि भले भाज्यउॅ, तब यहयि पैर गाड़ी
पहुॅचायि दिहिस महिका
ठुकरन की छोलदारी।
दुनिया ति हयि अजूबा,
यह मोरि पैर-गाड़ी।
बड़की ति भयि लड़ाई, छोटकी चल्यउॅ बियाहयि;
मूँड़े पर मउरू बाँध्यउँ फिरि बन्यउॅ बड़ा बनरा <ref>दूल्हा, वर</ref>
बाजयि लागीं तुड़ुही, कड़के कसि-कसि तासा,
पहुॅची बरात धूरे, सब आये अगवानी।
घूँघुट का जब खोल्यउॅ देख्यउॅ दुलहिनि कानी।
कस दुम दबायि भाज्यउॅ
अँकुयायि ति हयि अूजबा
यह मोरि पैर-गाड़ी
जब जिला की कच्यहरी पहिले चला मुकदिमा,
इजलासु बड़ा गड़बड़ मँइॅ सोचि-सोचि सकुच्यउॅ।
छोटके साहब कुरसी पर गाल फुलाये हयिं,
‘‘मइॅ आपुका कसूरी’’ , बड़के उकील बहॅसयि।
सब खायि लिहिन रूसबति, तब सड़क-सड़क सड़क्यउॅ;
सबके साह्यब बॅगला
का फिरि महि का लायी।
दुनिया ति हयि अजूबा
यह मोरि पैर-गाड़ी।

शब्दार्थ
<references/>