भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैर अपने थे मगर उनके इशारों पर चले / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैर अपने थे मगर उनके इशारों पर चले
लोग कठ पुतली-से घिर्री और तारों पर चले

हम धरा के पुत्र थे,हम कीच में लिपटे रहे
हम नहीं वो लोग जो चन्दा-सितारों पर चले

नित नये नारों को गढ़ लेते हैं अवसर देख कर
राजनैतिक रूप से वे सिर्फ़ नारों पर चले

गीतकारों के लिए गायक ज़रूरी हो गये
और गायक भी सदा संगीतकारों पर चले

हम अविश्वासी सही, लेकिन डरे हैं आप भी
ऐसे सौदे कब भला मैखिक करारों पर चले

पाँव पैदल उनको उनको चलना ही नहीं आया कभी
वायुयानों से उतरते ही वे कारों पर चले

पेड़ से टूटे न थे तो दर-ब-दर भटके न थे
पेड़ से हो कर अलग पत्ते बयारों पर चले