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पैलौ फेरौ / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
आज सूं
म्हैं नीं सोचूंला
आपरै आपै
आज सूं
म्हैं नीं देखूंला
खुद री आंखियां
आज सूं
म्हैं नीं बोलूंला
खुद री बांणी
लौ म्हैं पैलौ फेरौ लेवूं