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पैसे के समय में / रामदरश मिश्र

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न सुबह उसकी, न शाम उसकी
न कोई छुट्टी उसकी
न कोई ऋतु उसकी
वह तो पैसे के समय में चलता रहता है
पैसा चाहे ग़रीब की आह से निकला हो
चाहे अमीर की वाह से
कैसी है यह ज़िन्दगी
जो एक बन्द कमरे में सिमट कर
पैसे का जाप किया करती है
और बाहर समय की तमाम छवियाँ
चारों ओर उत्सव मनाती रहती हैं
और अपने से जुड़ी ज़िन्दगियों को
जीने की लय प्रदान करती हैं।
-25.9.2014