पैसों के लिए परदेस / प्रांजल धर
परदेस रहते वे चार पैसे कमाने के लिए
ऐसा नहीं कि अच्छा लगता उन्हें
बहुत थोड़े-से पैसों के लिए
घर-परिवार और माटी से बिछोह;
खेतों, कुँओं और रिश्तों से दूरी !
यह भी नहीं कि वे
स्वामी हैं अपार धन की अपरिमित भूख के
या विलासी इच्छाओं में विचरण करने की
अतृप्त कामना भरी पड़ी उनके भीतर,
या फोर्ब्स के अमीरों में गिने जाना चाहते वे !
उनके पास ऐसा बहुत कुछ होता कहने के लिए
जिसे कहा ही नहीं जा सकता,
धीमे-धीमे वे चुप्पियों के क़ब्रिस्तान हो जाते,
तानाशाही के संविधान हो जाते,
एक बहुत लम्बी नींद में सोने से पहले ही
बुरी तरह सो जाते...!
खो जाते बाजार की क्रूरता में ।
फिर कौन करना ही चाहे इन खोए हुए
सस्ते आदमियों की ख़ोज !
वे भी नहीं, जो उनके हिस्से की
जिन्दगी भी जी जाते हैं
सिर्फ़ पैसों के लिए ।