पॉचमोॅ-सर्ग / सिद्धो-कान्हू / प्रदीप प्रभात

पॉचमोॅ-सर्ग

हूल रोॅ दमन
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सिद्धो-कान्हू आपनोॅ तीरोॅ सेॅ,
अंग्रेजोॅ केॅ दै विथराय।

दोनों दल के पुरा सेना
युद्ध भूमि मेॅ होलै ढेर।

सिद्धो-कान्हू युद्ध भूमि सेॅ, भागै वाला,
छेकै कहाँ जवान।

युद्ध भूमि मेॅ मरबोॅ मिटबोॅ,
समझै आपनोॅ शान-गुमान।
आँखलाल गोस्सा सेॅ करनें, फौजी नेॅ,
करी देलकै गोली मारी, सिद्धो केॅ बेजान।

सिद्धो जखनी घायल होलै,
होलै अंग्रेजोॅ के जीत।

ठाकुर अगुवा गिरलै जखनी,
संताल जत्था होलै भयभीत।

संतालोॅ के पॉव उखड़लै,
जखनी गिरलै शेर।

घायल सिद्धो-कान्हू जखनी कहराबै छै,
अंग-घरा के लोग फबकी-2 कानै छै।

लहू-लुहान बेहोशी हालत,
सिद्धो केॅ घिसियैलेॅ लानै।

होशोॅ मेॅ सिद्धो-जखनी आबै छै,
बड़-बड़ कुच्छु बोलै छै।

कैप्टन लायेड, ब्राऊनें पूॅछै छै,
सिद्धो नै तनियों मुँह खोलै छै।

अंग्रेजोॅ द्वारा कोशिश रहै,
बात उगलबाबै केॅ।

सिद्धो-के मुॅख सेॅ निकलै,
जंगे-आजादी के नारा।

अंग्रेज जेकरा सेॅ दिनरात आतंकित रहै,
ओकरा अपना आगू पावी मन हरखित रहै।

नेता सिद्धो-कान्हू पकड़ी,
फॉसी के तख्ती झुलवावै।

फाँसी गल्ला मेॅ लगाबी,
झुलाबै बरगद केरोॅ डार।

बरगद गाछी गल्ला बान्ही,
फॉसी खींचै रस्सी केॅ कस्सी।

अंग्रेज बनलै सिद्धो-कान्हू केरोॅ काल,
फूलों-झानों के रोम-रोम मेॅ भरलोॅ छै फौलाद।

संताल हूल केरोॅ,
अंत होलै तत्काल।

अंगघरा पर लोटै छेलै,
अंग भूमि के... लाल।

अंग्रेज जुल्मी के विरोधी,
जिनगी भर हर घड़ी।

अंतिम समय गोड़ मेॅ बेड़ी,
हाथ मेॅ रहलै हथकड़ी।

सिद्धो-कान्हू केॅ पकड़ी लानी,
जे जग्धा पर फॉसी लटकाबै।

ऊ गॉव रहै पंचकठिया,
जे ‘‘क्रान्तिस्थल’’ कहलाबै।

क्रांतिस्थल पेॅ देश प्रेम के,
ज्वाला जैजॉ भड़कै छै।

अंग्रजोॅ सें टक्कर लै लेॅ,
भुजा जहाँ पर फड़कै छै।

संताल हुल केरोॅ,
होलै अन्त तत्काल।
अंग भूमि मेॅ लोटै छेलै,
अंग भूमि के लाल।

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