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पॉच महीना बीतै पर छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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पाँच महीना बीतै पर छै अभियो ताँय नै अयलेॅहेॅ जी।
ऐ परिवर्तन के की कारण कुच्छो नैं बतलैलेहेॅ जी।
पैसठ बरस छमाछम बीतलै
दुख सुख समय बीतैलैहेॅ जी।
रूसा बौसी घंटा घुंटी
फेनूॅ खूब हॅसैलेहॅे जी।
एत्तेॅ गुमसुम के की कारण कुच्छोॅ तेॅ बतलाबेॅ जी।
कटियो टा नैं मौन लगै छै आबी केॅ बहलाबे जी।
सुरूज उगै छै आगिन लै केॅ
धरती पर बरसाबै छै।
उख बिख प्राण करैछै सबके।
हबोॅ सेॅ गरमी लागै छै।
बीनी लेॅ केॅ दौड़ॅ फरती शीतल पवन बहाबेॅ जी।
काम धाम छोड़ी दे तोहें हमरा लगाँ आबेॅ जी।
तन बीमार छै, मन बीमार छै।
ऊपरोॅ से गरमी मारे छै।
तहूँ बिछड़ली छॅ हमरा सें,
ऐसे हिम्मत हारेॅ छै।
कदम मिलाय के चललौह हरदम आबैॅ कैन्हें नुकैलेहॅ जी?
पाँच महीना बीतै पर छै, अभियो ताँय नै अयलेहेॅ जी।

09/06/15 सायं 5.45