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पोखर के पानी जैसे, दिन-दिन सूखै भाई / छोटेलाल दास
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पोखर के पानी जैसे, दिन-दिन सूखै भाई
ऐसे दिन-दिन आयु जाय हो॥1॥
घनाघन हाट जैसे, साँझ बेला उठि जावे।
ऐसे छूटि जावे परिवार हो॥2॥
सावन-भादो में जैसे, नीर-बुल्ला बनै नसै।
ऐसे उपजल देह जाय हो॥3॥
चाँदिनी के रात जैसे, जवानी के दिन तैसे।
आवत बुढ़ापा दुखदाय हो॥4॥
एक दिन मौत आवे, संग नहीं कोई जावे।
यहीं रहि जावे धन-धाम हो॥5॥
संतन के संग मिले, भक्ति भाव हीरा-मोती।
‘चन्दर’ तू लेहु न बेसाय हो॥6॥
व्यर्थ नहीं तन जावे, गुरु-पद जब ध्यावे।
‘लाल दास’ करु गुरु-सेव हो॥7॥