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पोखर तक में माँ बसती है / सुरजीत मान जलईया सिंह
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मेरे तो इस रक्त पुंज में माँ बसती है
घर आँगन पनघट तक में माँ बसती है
जिनको प्यारा शहर लगा वो शहर गये
गाँव की सौंधी खुशबू में माँ बसती है
खोलोगे जब नयन क्षैतिज ने नीचे तुम
खेतों से खलियानों तक में माँ बसती है
टीका टीक दुपहरी में जब थक जाओगे
फैली दूर तलक छायां में माँ बसती है
शहरों की तो नदियों से भी अच्छी है ये
गाँव की तो पोखर तक में माँ बसती है