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पोस्टकार्ड- 2 / मिक्लोश रादनोती / विनोद दास
Kavita Kosh से
कुछ मील दूर पर वे जला रहे थे
घास-फूस और घर
दिलकश चरागाह के किनारे पालथी मारकर बैठे
तोपगोलों से डरे किसान अपनी चिलम फूँक रहे थे
अब गड़ेरिये की एक लड़की
ठहरे ताल में उतरकर
चाँदी से चमकते पानी में लहरें पैदा कर रही थी
और पानी पीने के लिए झुकी गझिन बालों वाली भेड़ें
ऐसी लग रही थीं
जैसे छितरे हुए बादल तैर रहे हों
विनोद दास द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित