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पौध / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
आज अपने बसायें आशियाने के अहाते में
एक नए पौधे को देखा
उस छोटे से पौध को निहार रहा था मैं
सुनहरी धूप में
ओस की बूँदो के वजन से
नन्ही टहनियाँ झुकती-सी नजर आ रही थी
पर ख़ुशनुमा-सा दिखता हैं वह
हमारे नए, उन्मुक्त विचारों का सर्जन हैं वो
हमारी आत्मीयता कि शाखाएँ पनप रही हैं उसमें
अभी काफी छोटा-सा दिखता हैं वो
पर, सच मानो
इस बार
यकीनन एक बड़े पेड़ की शक्ल लेने को लालयीयत हैं
इस बार शायद इसकी जड़ें भी मजबूत होगी
भरोसा है मुझे आने वाली उन शाख़ों पर
जो आने वाले समय में
फल भी देंगें और ठंडी छांव भी
जि़ंदगी शायद फिर से ख़ुशनुमा होगी
आज अपने बसाये आशियाने के अहाते में
एक नए पौधे को देखा...