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पौर्वात्य निरंकुश्ता / असद ज़ैदी
Kavita Kosh से
जो ग़रीब है उसे अपने गाँव से आगे कुछ पता नहीं
कम ग़रीब है तो उसने देखा है पूरा ज़िला
सिर्फ़ अनाचारी ज़ालिमों ने देखे हैं राष्ट्र और राज्य
लाए हैं वे ही देशभक्ति की नई तरकीब जो
लोगों को गाजर और मूली में बदलती है
बदलती है गरीब को सूखे अचार में
अंग्रेज़ों को भी भारत बड़ा भारतीय नज़र आया था
नज़र आने लगा है जैसा अचानक
अब हिन्दी के कुछ अख़बारनवीसों को