भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पौ फटी धूप का दरिया निकला / जयंत परमार
Kavita Kosh से
पौ फटी धूप का दरिया निकला
रास्ता आँख झपकता निकला
ज़िस्म की क़ैद से साया निकला
उम्र भर जागने वाला निकला
नींद की बस्ती में पिछली शब में
फिर वही ख़्वाब पुराना निकला
होंठ पर इस्मे मोहम्मद बनकर
ख़ाना-ए-दिल से उजाला निकला
वो मेरी तरह दुखी है शायद
इक सितारा लबे दरिया निकला