भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यारा खरगोश / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
श्वेत बर्फ के गोले जैसा
लगता है नन्हा खरगोश
बूढ़ी नानी की गठरी-सा
लगता है नन्हा खरगोश
पर्वत पर बैठी बदली-सा
लगता है नन्हा खरगोश
दूर क्षितिज पर उगे चांद-सा
लगता है नन्हा खरगोश
रुई से भी अधिक मुलायम
लगता है नन्हा खरगोश
छोटे बड़े सभी को प्यारा
लगता है नन्हा खरगोश।