Last modified on 13 फ़रवरी 2020, at 12:11

प्यारा बसंत / हरेराम बाजपेयी 'आश'

लो आ गया ऋतुओं का राजा बसंत, प्यारा बसंत
खुशियाँ लिए खुशबू लिए न्यारा बसंत, प्यारा बसंत।
 सेवनति सतरंगी होकर
देशो बिखरी जाए, देखो निखरी जाएँ
फूलों के राजा गुलाब की,
खुशबू रंग जमाए...। खुशबू रंग जमाए
बौराए है आम खुशी से,
प्रिय टेसू के संग... लो आ गया प्यारा बसंत॥1॥

आसमान ने पहन रखा है,
जैसे नीला मलमल
और धारा ने ओढ़ राखी है,
हरी चुनरिया मखमल,
पीली सरसों पाठ पढ़ाए,
मन में भरे उमंग। ...लो आ गया॥ प्यारा बसंत॥2॥

प्यारा बसंत...हरे हरे हैं छोड़ खेत में,
और कहीं पर आलू... और ... काही पर आलू
गीत खुशी के गाए गेहूँ
राग बताए रतालू... राग बताए रतालू...
बहुत मजा देती है भैया,
ताजे गुड की सुगंध। ...लो आ गया प्यारा बसंत॥3॥

मस्ती में मेथी इतराई,
गोभी को पफगाड़ी फहराई,
शरम के मारे लाल टमाटर,
सुन पालक संग सगाई...
नींबू लुढ़क-लुढ़क कर नाचे,
मचा राखी हुड़दंग ।
लो आ गया प्यारा बसंत॥4॥

मुली ने पहना सफ़ेद कुरता,
और गुलाबी गाजर ने,
मटर फली ललचाए सबको,
जामफलों के आदर से,
लहसुन लम्बा होकर बोला,
अब समझो सरदी का अन्तलो आ गया प्यारा बसंत॥5॥