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प्यारी-प्यारी कारी-कारी अब घटा आने लगे / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
प्यारी-प्यारी कारी-कारी अब घटा आने लगे।
ऐ हमारे प्राण प्यारे तू कहाँ जाने लगे।
रात दिन बोले पपीहा दिल को धड़काने लगे।
क्या बिगाड़ा कोकिला का मुझको बहकाने लगे।
घोर घन गरजन लगे वो मेह बरसाने लगे।
भर गई नदियाँ ओ नाले बिजली चमकाने लगे।
क्या करूँ अब तो महेन्दर मुझको तरसाने लगे।
पाँब पर-पर के मनाऊँ तब भी झुंझलाने लगे।