भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यारी तुमको कला / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
प्यारी तुमको कला तुम्हारी है;
हमको अपनी ही रीत प्यारी है!
फोलों का भेद मुस्कियों दाबे
राह हमने भी क्या गुजारी है!