भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यारे दरसन दीज्यो आय तुम बिन रह्यो न जाय / मीराबाई
Kavita Kosh से
प्यारे दरसन दीज्यो आय तुम बिन रह्यो न जाय॥
जल बिन कमल चंद बिन रजनी ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी।
आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन बिरह कालजो खाय॥
दिवस न भूख नींद नहिं रैना मुख सूं कथत न आवे बैना।
कहा कहूं कछु कहत न आवै मिलकर तपत बुझाय॥
क्यूं तरसावो अन्तरजामी आय मिलो किरपाकर स्वामी।
मीरा दासी जनम-जनम की पड़ी तुम्हारे पाय॥