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प्यारे प्राण पखेरू उड़ जा / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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प्यारे प्राण पखेरू उड़ जा
होने आयी शाम॥
रहे युद्धरत कई बरस हम
पिंजरे में बन्दी ,
झेलीं कितनी मस्त बहारें
कितनी ही मंदी।
मोड़ जिधर जी चाहे मुड़ जा
होने आयी शाम॥
दुर्बल देह पींजरा जर्जर
अब दे माया छोड़ ,
जा अनन्त के उज्ज्वल वन में
देह पींजरा तोड़।
किसी और आलय से जुड़ जा
होने आयी शाम॥
इन हाथों ने पाला पोसा
मत कर इनका मोह ,
सबको ही है सहना पड़ता
प्रिय का दुखद विछोह।
हरि से मिलने हेतु बिछुड़ जा
होने आयी शाम॥