प्यार अथिति है / रामनरेश पाठक

प्यार अतिथि है
तिथि है

गृह सज्जा और चौराहों पर
एक अनियंत्रित अनाथालय की उपज
फसलों और फैसलों के बीच दबी हुई

निर्णय के पूर्व
यहां, वहां, सारे में
एक भिनभिनाती नपुंसक भीड़
और सिर्फ रिक्त हुए सूरज के खोल

सभ्यता और समस्या के नाम
केवल अनगिनत संज्ञाओं की कमाई
और पंचर योजनाएं
युद्ध और महामारियां
भूख के उगले हुए कचरे में
सीझ रहा है
माँस, मिथुन और मत्स्यगंध
एक छुई-मुई का सर्प
अभी भी प्रतीक्षित है देश और सामयिकता के नाम पर

केंचुए की तरह रति क्रिया में लीन समय
संख्याओं से वापस लौटने के लिए
विवश है
कि
समांतर और गुणोत्तर श्रेढ़ी का क्रम
संतुलित रहे,
एक विषम अवरोध का
जंगल से गुजरना अनिवार्य हो गया है
कि
एक ही चंदन वृक्ष
गंधमय करे पूरे वन को
एक ही किरण
पूरे अन्धकार को लील ले
एक ही शब्द
प्रणव,बीज, व्याहृति बने
इतिहास-मंत्र के
महामृत्युंजय-जप का

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.