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प्यार अपना भी सहारा था कभी / रंजना वर्मा

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प्यार अपना भी सहारा था कभी
खूबसूरत हर नज़ारा था कभी

जिंदगी प्यासी नदी सी बह रही
पास अपने भी किनारा था कभी

हैं बहकतीं आज फिर खामोशियाँ
मौन ने इन को दुलारा था कभी
 
तीरगी बढ़ने लगी है अब वहाँ
चाँद ने जिस को निहारा था कभी

देख कर माँ बाप को मुंह फेरता
आंख का उन की जो तारा था कभी

चंद रोज़ा है जवानी चार दिन
हमने भी वो दिन गुजारा था कभी

डूबने थे जब लगे मंझधार में
पार तुम ने ही उतारा था कभी