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प्यार का अहसास / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
बारिश में
याद आ गई
वो पहली मुलाकात
जब बोले ना थे
हम कुछ भी
और
पूरी कविता तैयार हो गई
वो शब्द
वो अहसास
वो कसक
वो अपनापन
इस सूने सन्नाटे में
तैरते-से सागर में
इन बूंदों का वजूद क्या है
क्या लहरें जानती हैं
क्या कोई और
यदि
कोई जानता है तो
वो तुम हो
और
मैं
अरे !
फिर से बारिश की बूंदे भिगो गई