प्यार का मौसम जहाँ को भा गया / सिया सचदेव

प्यार का मौसम जहाँ को भा गया
कुछ दिलों को और भी तडपा गया
 
आई है कुछ देर से अबके बहार
फूल कब का शाख पर मुरझा गया
 
कारखानों से जो निकला था धुआं
शहर में बीमारियाँ फैला गया
 
एक नेता था वोह और करता भी क्या
मसले वो सुलझे हुवे उलझा गया

तब वो समझा लूटना इक जुर्म है
सेठ के हाथों से जब गल्ला गया
 
क्या हुआ ऐसा किसी ने क्या कहा
उनके माथे पे पसीना आ गया
 
था हसीं मौसम बहारों का 'सिया'
एक बिरहन को मगर तडपा गया

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