भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यार का मौसम जहाँ को भा गया / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
प्यार का मौसम जहाँ को भा गया
कुछ दिलों को और भी तडपा गया
आई है कुछ देर से अबके बहार
फूल कब का शाख पर मुरझा गया
कारखानों से जो निकला था धुआं
शहर में बीमारियाँ फैला गया
एक नेता था वोह और करता भी क्या
मसले वो सुलझे हुवे उलझा गया
तब वो समझा लूटना इक जुर्म है
सेठ के हाथों से जब गल्ला गया
क्या हुआ ऐसा किसी ने क्या कहा
उनके माथे पे पसीना आ गया
था हसीं मौसम बहारों का 'सिया'
एक बिरहन को मगर तडपा गया