भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार का सिलसिला न रख जारी / ईश्वरदत्त अंजुम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
प्यार का सिलसिला न रख जारी
प्यार दिल पर हुआ है अब भारी

ख़ौफ़े-दहशत है दिल पे अब तारी
हम हैं और एक तेग़ दो धारी

चोट दिल पर लगा कोई कारी
ताकि रग रग से खून हो जारी

ज़ब्ते-ग़म की रही है ताब कहां
दिल पे अब दुख का बोझ है भारी

पायदारी कहां है रिश्तों में
प्यार में भी छुपी है अय्यारी

आन वाहिद में हो गया ओझल
आह ज़ालिम की बर्क़ रफ्तारी