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प्यार की चर्चा करें / विष्णु विराट

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दूर उनसे,
जो बनाते दूरियाँ
मिलन के पथ पर कहाँ मजबूरियाँ?
आइए कुछ प्यार की चर्चा करें।

जड़ हुए इस पेड़ को मिलकर हिलाएँ,
फूल पत्ते डालियाँ तब खिलखिलाएँ,
मुसकुराकर बादलों को दें निमंत्रण,
अब न हो सकते बहारों पर नियंत्रण,
आइए बरसाइए ठंडी फुहारें,
शोक में डूबी हुई बस्ती उबारें,
पर्व की त्योहार की चर्चा करें।

पास बैठे स्वयं के,
कुछ गुनगुनाएँ,
आइए आत्मस्थ हो कुछ गीत गाएँ,
रुक गई है धार आगे को बढ़ाएँ!
इस नदी को सिंधु से जाकर मिलाएँ,
योग से संयोग सुख को जोड़ दें हम,
विप्रयोगी व्यग्रताएँ तोड़ दें हम,
आइए अभिसार की चर्चा करें।

दृष्टि से ओझल करें विद्रुपताएँ,
सत्य शिव सुंदर सदा देखें दिखाएँ,
बात हँसकर के करें, कुछ मुस्कराएँ,
ज़िंदगी के राग रंगों को जगाएँ,
दूर से देखो न मात्र बहाव को तुम,
खोलिए तट से बंधी इस नाव को तुम,
आइए मझधार की चर्चा करें।