प्यार के जानकार / शचीन्द्र आर्य
कहने को वह ऑटो चलाते हैं
पर जितनी प्यार पर कहानियाँ नहीं लिखी गईं,
उससे कहीं अधिक वह इन कहानियों के पात्रों को जानते हैं।
वह जानते हैं,
पिछली सीट पर बैठे शहर के हर लड़के और हर लकड़ी के मन की बात।
क्यों कोई लड़का अँधेरा होने पर किसी लड़की को गली के मोड़ तक छोड़ने आता।
वह जानते हैं,
लड़की लड़के को कहाँ चूमना चाहती है और चाहकर भी चूम नहीं पाती।
क्यों साथ घूमता हर जोड़ा चाहकर भी शादी क्यों नहीं कर पाता।
वह जानते हैं,
उनके बीच होने वाले झगड़े की हर वज़ह।
दोनों के घबराए हुए चेहरों के पीछे का सच।
वह सब जानते हुए उन्हें कुछ नहीं कहते।
कभी उनके माता-पिता से चुगली नहीं करते।
चुप रहकर, सब देखते हैं। तब भी वह मूक दर्शक नहीं हैं।
वह सहायक हैं। सूत्रधार हैं। कभी साथी हैं।
उनका कुछ न कहना, पिछली सीट पर प्यार को बचाए रखना है।
जब तक वह ऐसे रहेंगे, थोड़ा प्यार और थोड़ा शहर दोनों बचे रहेंगे।