प्यार के पहलू / हरिऔध
है उन्हें चाव ही न झगड़ों का।
पाँव जो प्यार-पंथ में डालें।
वे रखेंगे न काम रगड़ों से।
नाक ही क्यों न हम रगड़वा लें।
सब सहेंगे हम, सहें कुछ भी न वे।
जाँयगे हम सूख उन के मुँह सुखे।
जाय दुख तो जी हमारा जाय दुख।
देखिये उन की न नँह उँगली देखे।
दूसरों को किस लिए हैं दे रहे।
वे दिलासा खोल दिल दे लें हमें।
लोकहित की लालसाओं से लुभा।
ले सके तो हाथ में ले लें हमें।
आप के हैं, है सहारा आप का।
क्यों बुरे फल आप के चलते चखें।
दे न देवें दूसरों के हाथ में।
रख सकें तो हाथ में अपने रखें।
किस लिए पीछे उसी के हैं पड़े।
आप के ही हाथ में है जो पड़ा।
क्या बँधाना हाथ उस का चाहिए।
सामने जो हाथ बाँधे है खड़ा।
साथ कठिनाइयाँ सकल झलकीं।
खुल गये भेद तब मिले दिल के।
हित बही पर चले सही करने।
जब हिले हाथ दो हिले दिल के।
टूटता है पहाड़ पग छोड़े।
बल नहीं घट सका घटाने से।
क्या करें बेतरह गया है नट।
हाथ हटता नहीं हटाने से।
तब हुई साध दोस्ती की क्या।
जब न जी ठीक ठीक सध पाया।
तब बँधी प्रीति गाँठ बाँधो क्या।
जब गले से गला न बँध पाया।
आप के हैं, रहें कहीं पर हम।
क्या हुआ रह सके न पास खड़े।
याद दिल में बनी रहे मेरी।
दूर दिल से करें न दूर पड़े।