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प्यार तेॅ बचैतल्हाँ / जटाधर दुबे
Kavita Kosh से
बगिया के अंगना में तोहरे ढूंढ़ै छेलौं,
फूलोॅ के ख़ुशबू में तोहरे सूंघै छेलौं,
हवा के झोंका में तोहरे छूवै छेलौं,
राती इंजोरिया में तोहरे देखै छेलौं।
झरना के झरझर में तोहरे तेॅ स्वर छेलै,
पŸाा के सरसर में सिहरन तोहरे छेलै,
सागर के लहरोॅ में भी तेॅ तोहरे उमंग छेलै,
दरिया छेलौं हम्में, लहर तोहरै छेलै।
कोयल के कूकोॅ जेना बोली छेल्हों तोर्होॅ,
शीतल फुहार जेना बरसै छेलै मन पर,
पंकज के शीतल सुगंध तोरोॅ नजरोॅ में
चंदन के छेलै जेना बगिया तोरोॅ तन पर॥
सुंदर हेनोॅ घाटी में घोॅर जे बनैथल्हाँ,
तारोॅ केॅ रोशनी में रात जे बितैथल्हाँ,
कन्दमूल भोजन से पेट जे भरैथल्हाँ,
जीवन के आंधी से प्यार तेॅ बचैतल्हाँ।