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प्यार प्यार और प्यार / मुकेश कुमार सिन्हा

न आसमान को मुट्ठी में,
कैद करने की थी ख्वाइश,
और न, चाँद-तारे तोड़ने की चाहत!
कोशिश थी तो बस,
इतना तो पता चले की,
क्या है?
अपने अहसास की ताकत!!
 
इतना था अरमान!
की गुमनामी की अँधेरे मैं,
प्यार के सागर मैं,
ढूँढूँ अपनी पहचान!!
इसी सोच के साथ,
मैंने निहारा आसमान!!!
 
खोला मन को द्वार!
ताकि कुछ लिख पाऊँ,
आखिर क्या है?
ढाई आखर प्यार!
पर बिखर जाते हैं,
कभी शब्द तो कभी,
मन को पतवार
रह जाती है,
कलम की मुट्ठी खाली हरबार!!
 
फिर आया याद,
खुला मन को द्वार!
कि किया नहीं जाता प्यार
सिर्फ जिया जाता है प्यार
किसी के नाम के साथ,
किसी के नाम के खातिर
प्यार, प्यार और प्यार!!