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प्यार भूलते गए अज़ीज़ भूलते गए / सुजीत कुमार 'पप्पू'
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प्यार भूलते गए अज़ीज़ भूलते गए,
बदतमीज़ियाँ हुई तमीज़ भूलते गए।
होश ज्यों जवाँ हुए जिम्मे मिले बड़े-बड़े,
तौलिए के ख़्याल में कमीज़ भूलते गए।
रात-दिन जले-तपे गिरे-उठे हज़ार हम,
रोज ख़्वाब देखने में क्रीज़ भूलते गए।
बात है हबीब की नहीं किसी रक़ीब की,
क्या किसे कहें हरेक चीज़ भूलते गए।
ज़िंदगी अजीब है, विषाद है न हर्ष है,
स्वाद की तलाश में लज़ीज़ भूलते गए।