भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार भूलते गए अज़ीज़ भूलते गए / सुजीत कुमार 'पप्पू'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार भूलते गए अज़ीज़ भूलते गए,
बदतमीज़ियाँ हुई तमीज़ भूलते गए।

होश ज्यों जवाँ हुए जिम्मे मिले बड़े-बड़े,
तौलिए के ख़्याल में कमीज़ भूलते गए।

रात-दिन जले-तपे गिरे-उठे हज़ार हम,
रोज ख़्वाब देखने में क्रीज़ भूलते गए।

बात है हबीब की नहीं किसी रक़ीब की,
क्या किसे कहें हरेक चीज़ भूलते गए।

ज़िंदगी अजीब है, विषाद है न हर्ष है,
स्वाद की तलाश में लज़ीज़ भूलते गए।