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प्यार मिले तो गल-गल जाता है साबुन / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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प्यार मिले तो गल-गल जाता है साबुन।
इसीलिये गोरी को भाता है साबुन।
आशिक़, शौहर दोनों ख़ूब तरसते हैं,
हर दिन गोरी को नहलाता है साबुन।
दिन भर कोमल तन से ख़ुशबू आती है,
जब-जब अपना हुनर दिखाता है साबुन।
रहा नहीं जाता गोरी से, बिना मिले,
हर दिन इतना प्यार जताता है साबुन।
हाल बुरा हो जाता तब-तब गोरी का,
जब-जब हाथों से गिर जाता है साबुन।
बनी रहे सुन्दरता इसीलिए ख़ुद को,
थोड़ा-थोड़ा रोज़ मिटाता है साबुन।
क्या होती है वफ़ा सीख लो साबुन से,
मिट जाने तक साथ निभाता है साबुन।