प्यार मिले न मिले / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
मैं रसहीन वृक्ष पतझर का मुझे बहार मिले न मिले।
जीवन है पर प्राण हीन है प्यार दुलार मिले न मिले।
रीत गये गुण कोष, दोष ही दोष बचे हैं अब मुझमें
संवेदन से शून्य हुआ मन मस्त फुहार मिले न मिले।
बीत गया है शुभ मुहूर्त मंगलमय लग्न व्यतीत हुई,
अब क्या होगा मधुर समर्पण का उपहार मिले न मिले।
मरुथल के वरदान मिले जब तक थी चाह सरस मन में,
अब बन गया मूर्ति पत्थर की मुझको हार मिले न मिले।
आशाओं का हुआ विर्सजन सारे सम्बल खत्म हुए,
निराधार मेरे प्राणों को अब आधार मिले न मिले।
सदा सदा से मेरा जीवन खारा सागर बना हुआ
आकर कोई मधुर वसन्ती गन्धित धार मिले न मिले।
तुम तो बसे हुए हो मुझमें होकर विलग न कभी रहे,
फिर धरती पर मुझको कोई दर्शन सार मिले न मिले।
प्रलय गर्जनाओं से वेष्टित अन्तस का संसार हुआ,
कहना हो सो कह ले पंछी ! फिर स्वर तार मिले न मिले।
रहा ढूढ़ता द्वारे द्वारे मिले नही तब छिपे रहे तुम,
रोग असाध्य हो गया मन का अब उपचार मिले न मिले।
कौन भला सुनता सागर के तूफानों में करूण्स पुकारें ?
डूब गयी है नाव हमारी अब पतवार मिले न मिले।
रूठ न जाये प्यार आपका मुझको मिलता रहे सदा,
माता ! मुझको और किसी का जग में प्यार मिले न मिले।