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प्यार में तीन / तुलसी रमण

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मैने तुम्हें
उस पिछली सड़क के
           किनारे-किनारे
हल्कीए नीली आभा लिए
एक सफ़ेद चिड़िया-सी
           फुदकते देखा
उस घर-द्वार तक
मुड़कर पूछती हुई सी:
         देखो
          देख सकते हो !
कब तक देखता रहूँगा
तुम्हें उस घर्-द्वार तक
कब तक देखोगी
         मेरा देखना !

यह कैसा धीरज है
          बीच खड़ा
भरा आती हैं
मेरी आँखें
तुम्हारे
दु:ख सुख में

यह कैसा मोह है
दुख है
सुख है
या प्प्यार प्रिये !
कुल्लू, मई 1988