प्यार में धोखा खाई लड़की / लीना मल्होत्रा
प्यार में धोखा खाई किसी भी लड़की की
एक ही उम्र होती है,
उलटे पाँव चलने की उम्र !!
वह
दर्द को
उन के गोले की तरह लपेटती है,
और उससे एक ऐसा स्वेटर बुनना चाहती है
जिससे
धोखे की सिहरन को
रोका जा सके मन तक पहुँचने से !!
शुरू में
वह
धोखे को धोखा
दर्द को दर्द
और
दुनिया को दुनिया
मानने से इनकार करती है
वह मुस्कुराती है
देर तक
उसका विश्वास अटूट रहता है
और उसे लगता है
कि
सरहद के पार खड़े उस बर्फ़ के पहाड़ को
वह अपनी उँगलियों
सिर्फ अपनी उँगलियों की गर्मी से
पिघला सकती है
फिर
टूटता है विश्वास,
दुनिया
टूटती है
लड़की
दिन दिन नहीं रहते,
राते रातें नहीं!
वह
रात के दो बजे नहाती है
और खड़ी रहती है
बालकनी में सुबह होने तक,
किसी को कुछ पता नहीं लगता
सिवाय उस ग्वाले के
जो रोज़ सुबह चार बजे अपनी साइकिल पर निकलता है !
उसका
दृश्य से नाता टूटने लगता है
अब वह चीज़ें देखती है पर कुछ नहीं देखती
शब्द भाषा नहीं ध्वनि मात्र हैं
अब वह चीज़े सुनती है पर कुछ नहीं सुनती
करती है पर कुछ नहीं करती,
वह गूंगी-बहरी-अंधी लड़की,
होने अनहोने से परे
धोखे से भागती नहीं....
धोखे को जीती है !
पर कोई नहीं जानता ...
क्योंकि वह मुस्कुराती है
शायद ग्वाला जानता है
शायद रिक्शावाला जानता है
जिसकी रिक्शा में वह
बेमतलब घूमी थी पूरा दिन और कहीं नहीं गई थी
शायद माँ जानती है
कि उसके पास एक गाँठ है
जिसमें धोखा बँधा रखा है
प्यार में धोखा खाई लड़की
शीशा नहीं देखती
सपने भी नहीं
वह डरती है शीशे में दिखने वाली लड़की से
और सपनो में दिखने वाले लड़के से,
उसे दोनों की मुस्कराहट से नफ़रत है
वह नफ़रत करती है
अपने भविष्य से
उन सब आम बातों से
जो
किसी एक के साथ बाँटने से विशेष हो जाती हैं ।
प्यार में धोखा खाई लड़की का भविष्य
होता भी क्या है
अतीत के थैले में पड़ा एक खोटा सिक्का
जिसे
वह
अपनी मर्ज़ी से नहीं
बल्कि वहाँ ख़र्च करती है
जहाँ वह चल जाए ।