प्यार वफ़ा उल्फ़त यारी में तो कोई तक़रार नहीं / रंजना वर्मा
प्यार वफ़ा उल्फ़त यारी में तो कोई तक़रार नहीं
दिल से दिल की बात हुई कहते इसको ही प्यार नहीं
चौड़ी छाती पर सागर की है तूफ़ान उठा करते
सीमाओं में बंधते दरिया में होती मझधार नहीं
पतझर खुद ही पत्ते चुन कर दूर बहा ले जाता है
रुत बहार आने से पहले करती कुछ इसरार नहीं
हँस कर स्वागत करती धरती आते जाते मौसम का
लेकिन इन ऋतुओं से उस की होती है मनुहार नहीं
रोज़ ठिठोली मस्त पवन करती ही रहती पत्तों से
कलियों पर फिर भी उसका है चढ़ता रोज़ खुमार नहीं
तितली भँवरे व्याकुल होकर ढूँढा करते गुलशन को
फूल बहुत खिलते हैं लेकिन साथ सभी के खार नहीं
रस्ते रस्ते भटका करता राही मंजिल की ख़ातिर
दुनियाँ में है कौन जिसे होती दर की दरकार नहीं