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प्यार सातों सुरों में सजाते रहो / सूरज राय 'सूरज'

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प्यार सातों सुरों में सजाते रहो।
ज़िंदगी गीत है खुल के गाते रहो॥

भूल जाऊँ न मैं भूले-भटके तुम्हें
भूले-भटके ही तुम याद आते रहो॥

आबले न पड़ें आग के जिस्म पे
बर्फ़ के चन्द टुकड़े जलाते रहो॥

आप पगड़ी की कीमत समझ न सके
सर जो नंगा हुआ है झुकाते रहो॥

फेस कोई न हो दिल की बुक में, मगर
फेसबुक में ही रिश्ते बनाते रहो॥

सर उठे न उठे फ़ि क्ऱ किसको यहां
पर ज़माने पर उंगली उठाते रहो॥

एक पल को ही "सूरज" बने भी तो क्या
हश्र तक दीप-सा टिमटिमाते रहो॥