भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यार से और बढ़कर नशा कुछ नहीं / चंद्रभानु भारद्वाज
Kavita Kosh से
प्यार से और बढ़कर नशा कुछ नहीं;
रोग ऐसा कि जिसकी दवा कुछ नहीं।
जिस दिये को जलाकर रखा प्यार ने,
उसको तूफान आँधी हवा कुछ नहीं।
जान तक अपनी देता खुशी से सदा,
प्यार बदले में खुद माँगता कुछ नहीं।
जिसने तन मन समर्पण किया प्यार को
उसको दुनिया से है वास्ता कुछ नहीं।
आग की इक नदी पार करनी पड़े,
प्यार का दूसरा रास्ता कुछ नहीं।
रेत बनकर बिखरती रहे ज़िन्दगी,
शेष मुट्ठी में रहता बचा कुछ नहीं।
हाल सब आँसुओं से लिखा पत्र में,
पर लिफाफे के ऊपर पता कुछ नही।
देह तो जल गई आत्मा उड़ गई,
राख है और बाकी रहा कुछ नहीं।
प्यार का फल मिला जो 'भरद्वाज' को,
दर्द की पोटली है नया कुछ नहीं।