भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार से होंगे लबालब शब्द के सागर सभी / सूरज राय 'सूरज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार से होंगे लबालब शब्द के सागर सभी।
थाम लें इक-दूसरे का हाथ गर अक्षर सभी॥

गर यही रफ़्तार इंसानों के सजदों की रही
मन्दिरों में बैठ जाएंगे कभी पत्थर सभी॥

मौत ने लिख दी अज़ल से ये इबारत अर्श पे
कोई भी मालिक नहीं है, हैं यहाँ नौकर सभी॥

अब ज़ुबानें हो गयीं हैं इक तवायफ़ की तरह
बात तो वैसे भी करते हैं बड़ी अक्सर सभी॥

क्या ज़ह्र फैला दिया है मज़हबों के सांप ने
ताजपोशी अम्न की करने चले ख़ंजर सभी॥

देख मुट्ठी के लिये कसती हैं ख़ुद को उँगलियाँ
पर्वतों की शक्ल ले ली जब मिले पत्थर सभी॥

हो गया सस्ता बहुत नफ़रत का "सूरज" आजकल
जो मुहब्बत के दिये थे हो गए बेघर सभी॥