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प्यार हमेशा लड़कर जीता / हरि फ़ैज़ाबादी
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प्यार हमेशा लड़कर जीता
लेकिन हद के अन्दर जीता
वापस तो आ नहीं सका, पर
अपनी जंग कबूतर जीता
लाखों हाथों के सवाल को
पल भर में कम्प्यूटर जीता
दिन भर की मुश्किल को शब में
मैक़श ने मय पीकर जीता
मेरी दिन भर की थकान को
बच्चा केवल हँसकर जीता
ख़ूबसूरती से अक्सर ही
सुख का खेल मुक़द्दर जीता