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प्यार हृदय के हेनोॅ बोलै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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प्यार हृदय के हेनोॅ बोलै
पुरबैया नीमी तर डोलै।

चुप छै ठार, धरा भी चुपचुप
कुछ छै तेॅ बस फुसका-फुसकी ।
आँख बहुत छै चंचल सबके
के छुपलोॅ छै मन में घुसकी ।
मन के बात मन्हैं जानै छै
कैन्हें कोय्यो देह टटोलै !
पुरबैया नीमी तर डोलै ।

पानी आर हवौ सेॅ पतला
चन्दन गंधोॅ सें चिकनैलोॅ
किसिम-किसिम के कुसुम रसोॅ के
जी भर पीलें, बहुत अघैलोॅ
आय हृदय में वही प्रेम ठो
अमृत केरोॅ रस केॅ धोलै ।
पुरबैया नीमी तर बोलै ।