(सरिता के साथ हुई पहली मुलाक़ात का काव्यात्मक चित्रण)
पहली बार मिले हम दोनों
मन्दिरों के शहर में जाकर
ख़ुशबू जैसी चढ़ी थी गाडी
मेरे निकट बैठ गई थी
नज़रों की भाषा में हमने
बातें की थीं
आँखों के लग्न-मण्डप में
एक-दूजे को
वर-मालाएं फनाईं थीं
मेरे पास थी इक पुस्तक
कविताओं की
सरगोशी में तुमने मांगी
दिल की पुस्तक, प्यार की पुस्तक
दुधिया हाथ में तेरे थामी
बातें की थीं, बहुत सी बातें
घायल-घाटी की थीं बातें
उजड़े-घरों की, बिछुड़े हुओं की
हत्यारों के कुकर्मों की बातें
मानवता के मरहम की बातें
तुम ही ने तो यह भी कहा था
प्यार है ख़ुशबू जिधर भी जाए
महकाता है दिल में फूल
मन ही मन में, मैं ने कहा था
तुम सरिता और मैं हूँ प्यास
निकाली गई थी शहर से अपने
उसी शहर में
पीछे मुडकर मैं भी देखा
शाप लगा और पत्थर बना हूँ
“पीते हैं हम लोग यह जीवन
फटे-दूध वाली चाय की तरह”
मैंने भी कुछ ऐसा कहा था
गाडी रुकी थी एक मोड़ पर
हिरनी-जैसी तुम उतरी थीं
पीछे मुड़ कर तुमने दी थी
एक मुस्कुराहट सूर्य-किरण सी
सुनता हूँ मैं आज भी आहट
अपने दिल की पगडंडी पर
हिरनी के उस चलने की
वह क्षण तो उपवन बना था
ख़ुशबू से सब कुछ महका था
तुम ही ने तो यह भी कहा था
प्यार है ख़ुशबू जिधर भी जाए
महकाता है दिल में फूल
मन ही मन में मैंने कहा था
तुम सरिता और मैं हूँ प्यास।
- पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश की दो पंक्तियाँ
(26नवम्बर 1997-जम्मू)