भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार / अनुपमा तिवाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार, तुम कितने सुन्दर हो
तुम्हारे हाथ-पैर होते
तो मैं, तुमसे लिपट-लिपट जाती
छोड़ती ही नहीं तुम्हें
मुझे पता है
तुम पर लगती रही हैं तोहमतें
कभी पश्चिमी संस्कृति की
तो कभी चरित्रहीनता की
परन्तु
प्यार, तुम तो सदा थे
हो
और रहोगे
सात समुन्दर पार भी धड़कते रहोगे दिलों में चुप-चुप
बहते रहोगे अविरल आँखों से
रात के अंधेरों में
प्यार, मुझे पता है
कि तुम कुचले जाते रहे हो
कभी इज्ज़त की दुहाई दे कर तो
कभी न जाने क्यों-क्यों?
प्यार, तुम जब भी कुचले जाते हो
मेरे गाल पर एक तमाचा लग कर बोलता है
जाओ! तुम्हारी दुनिया में हमें स्वीकार करने की हिम्मत ही कहाँ है?
लेकिन प्यार,
तुम हमेशा जिंदा रहोगे
नहीं मरोगे
हारोगे भी नहीं
जीतते ही रहोगे
हर बार
हर बार!