भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस पेड में
कल जहाँ पत्तियाँ थीं
आज वहाँ फूल हैं
जहाँ फूल थे
वहाँ फल हैं
जहाँ फल थे
वहाँ संगीत के
तमाम निर्झर झर रहे हैं
उन निर्झरों में
जहाँ शिला खंड थे
वहाँ चाँद तारे हैं
उन चाँद तारों में
जहाँ तुम थीं
वहाँ आज मैं हूँ
और मुझमें जहाँ अँधेरा था
वहाँ अनंत आलोक फैला हुआ है
लेकिन उस आलोक में
हर क्षण
उन पत्तियों को ही मैं खोज रहा हूँ
जहाँ से मैंने- तुम्हें पाना शुरु किया था!