भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार : बीसवीं सदी-2 / प्रभात रंजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार-
पाए हैं आज़ाद विचार
माँ-बाप ढूंढ़ते हैं किसी रियासत का राजकुमार,
या आई०ए०एस०
बेटी करती है शापिंग, बोटिंग
देखती है सैकिन्ड शो
'ओह डैडी तुम कितने अच्छे हो'
(डैडी हैं कर्ज़दार
कोठी, बावर्ची, माली, सोफ़ा, कार)
घूमती है बेबी (?)
बिगड़े रईसों के संग
मसलन-
(भूतपूर्व)'राजा सूर्य प्रताप परमार'।

(कुछ दिन चला यूँ ही
कुछ-कुछ मीठा,
तीखा, कुछ तीता
मज़ा, लज्जत...)
फिर,
आशंका, भय...
(...एबार्शन या आत्मघात)
...प्यार-