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प्यासा ही रहा मन / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
सूखे में अकुलाया
डूब गया बाढ़ में
प्यासा ही रहा मगर
मन तो आषाढ़ में!
मेघों की उमड़-घुमड़
बिजली का कौंधना
याचक-सी आंखों को
लूओं का रौंदना
बालू की किरकिर ने
दर्द किया दाढ़ में!
प्यासाकुल आंगन में
बूंदों का कांपना
रेती पर रेंगती
मछलियों का हांफना
चटक गया कंठ, टीस
उठी हाड़-हाड़ में!
भीगे अहसासों का
इंद्रधनुष टूटना
धूसर आकृतियों से
रंगों का छूटना
तरसा मन, बरसा घन
रूखे झंखाड़ में!